Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 523
________________ सीता, सुग्रीव आदि के पूर्वभव |.४६७ परिणाम शान्त हुए। वह मरकर उसी नगर के राजा छन्नच्छाय की रानी श्रीदत्ता के उदर से वृपभध्वज नाम का पुत्र हुआ। कुमार वृषभध्वज घूमता-घामता एक बार वैल की मृत्यु-भूमि पर आ निकला। उसे जाति-स्मरणज्ञान हो गया। पूवभव को अन्तिम घटना उसकी आँखों के सामने नाचने लगी। वह अपने उपकारी को खोजना चाहता था। उसने एक उपाय ढूंढ ही निकाला । उसी स्थान पर एक चैत्य का निर्माण कराके एक दीवार पर पूर्व-जन्म की अन्तिम घटना चित्रित करा दी। चैत्य-रक्षकों को आदेश दे दिया-'जो कोई भी इस चित्र का रहस्य बतावे, मुझे तुरन्त सूचना देना।' एक दिन श्रावक पद्मरुचि वहाँ आया और दीवार के चित्र को ध्यानपूर्वक देखकर बोला-'यह तो मेरे ही जीवन की घटना है।' किसने यहाँ चित्रित करा दी ?' . रक्षकों ने तुरन्त सूचना दी और वृषभध्वज दौड़ा हुआ चला आया । पद्मरुचि से पूछा -क्या आप इस चित्र का रहस्य जानते हैं ? . -हाँ, राजन् ! मरते हुए बैल को मैंने ही नवकार मन्त्र सुनाया . था। न जाने इस बैल ने कौन-सी गति पाई ? वृषभध्वज गद्गद होकर बोला -उपकारी सेठ ! मैं ही वह बैल हूँ। आपकी कृपा से ही मुझे यह उत्तम मनुष्य जन्म मिला है, अन्यथा न जाने किन कुयोनियों में भटकना पड़ता । अव यह राज्य-पाट आप ग्रहण करिए। पद्मरुचि ने ऐतराज किया-नहीं, राजन् ! आप ही सँभालिए अपने राज्य को। -गंगा के अमृतसम पानी को पीकर खारा जल कौन पीवे ?

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