Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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५४ | जैन कथामाला (राम-कथा) । उसने रावण से कहा-दशानन ! भगवान की स्तुति का फल तो मोक्ष प्राप्ति है किन्तु सांसारिक फल भी कम नहीं। मैं प्रभु गुण श्रवण से बहुत प्रसन्न हुआ । मांगों, क्या मांगते हो? तुम्हें क्या दूँ ?
भक्ति विह्वल रावण ने उत्तर दिया-नागेन्द्र ! प्रभु की भक्ति के बदले कुछ लेना अपनी भक्ति को हीन करना है। ___-धन्य है लंकेश तुम्हें ! -धरणेन्द्र ने गद्गद कण्ठ से कहाकिन्तु प्रभु की भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। मैं अपनी ओर से यह अमोघविजया शक्ति और रूप विकारिणो विद्या देता हूँ। इन्हें ग्रहण करो।
धरणेन्द्र रावण को विद्या देकर वहाँ से चला गया। रावण भी अपने अनुचरों सहित नित्यालोक नगर गया और रत्नावली से विवाह करके वापिस लंका आ गया।
महामुनि वालो को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और आयु के अन्त में शैलेशी दशा प्राप्त कर वे सिद्धशिला में जा विराजे ।
-त्रिषष्टि शलाका २