Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१८२ / जैन कयामाला (राम-कथा)
-तात ! आपको कष्ट करने की क्या आवश्यकता? मुझे आज्ञा दीजिए। कुछ ही समय में आपकी इच्छा पूरी हो जायेगी।
दशरथ ने चारों पुत्रों को जाने की आज्ञा दे दी। राम-लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न बड़ी सेना के साथ मिथिलापुरी जा पहुंचे।
१ (क) उत्तर पुराण में राम-लक्ष्मण को बुलाने का एक अन्य कारण बताया है
राजा जनक किसी एक दिन विद्वज्जनों से सुशोभित अपनी राजसभा में बैठा था। वहीं कुशलमति विद्याधर भी बैठा था। राजा ने उससे पहले कुछ कथाएँ पूछी और फिर प्रश्न किया कि 'पहले राजा सगर, रानी सुलसा और घोड़े आदि जीव यज्ञ में होमे गये थे और सब सशरीर स्वर्ग को गये ऐसा सुना जाता है तो यथायोग्य रीति से हमको भी यज्ञ करना चाहिए ।' .
सेनापति ने उत्तर दिया-'सदैव क्रोधातुर नागासुर आपस की शत्रुता के कारण एक-दूसरे के काम में विघ्न डाला करते हैं। इसके सिवाय महाकाल व्यन्तर ने यह यज्ञ की नई विधि बताई है। इसलिए बहुत से लोगों (शत्रुओं) द्वारा इसमें विघ्न डाले जाने की आशंका है। इसके अतिरिक्त नागराज धरणेन्द्र ने नमि और विनमि का बहुत उपकार किया था। इसलिए उसके पक्षपाती विद्याधर अवश्य ही इसमें विघ्न करेंगे । यदि उन विद्यावरों को यज्ञ की बात ज्ञात न भी हो सके तो रावण बड़ा प्रतापी है । वही आकर कदाचित कोई विघ्न उपस्थित कर दे। हाँ, दशरथनन्दन राम बहुत शक्तिशाली हैं। अतः यदि उनको वुलाकर अपनी कन्या दे दी जाय तो यज्ञ निर्विघ्न पूरा हो सकता है।
सभी सभासद सेनापति की युक्ति से प्रसन्न हुए और जनक ने इसी आशय का एक पत्र लिखकर राजा दशरथ के पास अयोध्या भेज दिया।