Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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. . सूर्यहास खड्ग | २७१ पति के जाने के पश्चात भी चन्द्रनखा के मन में लगी आग शान्त न हुई । यद्यपि उसे विश्वास था कि दोनों कुमार खर के हाथों मारे जायेंगे । वह मन में यह समझ रही थी कि 'सीता के कारण ही उन
रावण ने अपने मन्त्रियों से सलाह की और सीताहरण का विचार व्यक्त किया । पहले तो सब ने विरोध किया किन्तु जब रावण अपनी हठ पर अड़ गया तो मारीच ने कहा-पहले कोई दूती भेजकर परीक्षा कर लीजिए कि सीता भाप में अनुराग रखती भी है, या नहीं। यदि अनुराग रखती होगी तो काम सहज ही बन जायेगा अन्यथा जवरदस्ती करनी पड़ेगी।
(श्लोक १११-१२३) ___रावण ने दूती सूर्पणखा को अपना अभिप्राय समझाकर भेज दिया । वह दूती शीघ्रता से सीता के पास जा पहुंची। (श्लोक १२४-२५)
उस समय राम-लक्ष्मण अपने अन्तःपुर सहित चित्रकूट वन में वनक्रीड़ा कर रहे थे। विश्रान्ति हेतु राम-लक्ष्मण कुछ दूर जा बैठे । उसी समय दूती सूर्पणखा वहाँ आई और परावर्तिनी विद्या (रूप बदलने वाली विद्या) से बुढ़िया का रूप धारण करके सीताजी के पास जा पहुंची।
अन्तःपुर की रानियों ने उससे परिचय पूछा तो उसने बताया कि मैं इस उद्यान की रक्षा करने वाली माता हूँ और यही रहती हूँ। .
बातों के दौरान ही सीता ने कह दिया कि-स्त्री जन्म में पतिव्रत और शीलवत पालन करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है। पति चाहे कैसा भी हो, स्त्री को उसमें अनन्य प्रेम रखना चाहिए । स्वप्न में भी वह परपुरुष की ओर दृष्टिपात न करे। .
यह सुनकर सूर्पणखा वहाँ से चली आई। उसे विश्वास हो गया था कि सीता परम सती है । यही बात उसने आकर रावण को बता दी।
रावण ने उसे फटकार कर भगा दिया। (श्लोक १२६-१६०) वाल्मीकि रामायण के अनुसारविराध का वध करने के पश्चात श्रीराम-लक्ष्मण-जानकी दण्डकवन में