Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रावण का मुकुट-भंग | ३३७ चकित थे। वहुत गर्व था इन्द्रजित को अपने नागपाश पर, उसका मुख लज्जा से नीचा हो गया।
विशेष-वाल्मीकि रामायण में१ प्रमदा-वन (अशोक वाटिका) को उजाड़ना, जम्बुमाली आदि राक्षसों तथा
अक्षकुमार के वध का वर्णन है। साथ ही इन्द्रजित के द्वारा नागपाश में
वाँधने ने वजाय ब्रह्मास्त्र से बाँधने का उल्लेख है। [सुन्दर काण्ड]. २ जब ब्रह्मास्त्र से बँधकर हनुमानजी पृथ्वी पर गिर पड़े तो अन्य राक्षसों
ने उन्हें वल्कल से वाँध दिया। इस पर ब्रह्मास्त्र के बन्धन स्वयं ही खुल — गये क्योंकि वह दिव्य अस्त्र दूसरे बन्धनों के साथ नहीं रह सकता । अतः . ' । रावण की राज्य सभा में हनुमान ने ब्रह्मास्त्र के बन्धन को नहीं तोड़ा, . . क्योंकि वह तो पहले ही खुल चुका था, साधारण वल्कलः बन्धन को ही - .. तोड़ा था।... ..
[सुन्दर काण्ड] .. यहाँ लंका दहन का वर्णन है । रावण ने रुष्ट होकर हनुमान को प्राण : दण्ड दिया । किन्तु विभीषण के यह समझाने पर कि 'दूत अवध्य होता है' .. उसने हनुमान की पूछ जलाने की आज्ञा दी । उसकी आज्ञा से राक्षसों ने . हनुमान की पूछ में पुराने कपड़े लपेटकर आग लगा दी और उन्हें लंका के राजमार्गों पर घुमाने लगे । यह अप्रिय समाचार राक्षसियों ने सीता से कहा तो हनुमान की रक्षार्थ सीता ने अग्निदेव से प्रार्थना की-'यदि मैं मन-वचन-काया से पतिव्रता हूँ तो हे अग्नि ! तुम हनुमान के लिए हिम के समान शीतल हो जाओ ।' सती की इस प्रार्थना के कारण ही हनुमान की पूछ नहीं जली। इस शीतलता को हनुमान ने भी सती का प्रभाव समझा । लंका को जलते देखकर भी उन्होंने समझ लिया कि 'सीताजी अपने धर्म प्रभाव से ही सुरक्षित रहेंगी।' इसके बाद हनुमान ने समुद्र के । जल से अपनी पूछ की आग बुझाई और सीताजी के पुनः दर्शन करके समुद्र लांधकर अपने विश्राम स्थल वानर भालुओं के बीच आ गये ।
[सुन्दर काण्ड]