Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राजा वज्रबंध से मिलन | ४४१ उनका अपवाद कर रहे थे आज उनकी याद में आँसू बहा रहे थे। . सभी की आँखें उस महासती के दर्शनों को लालायित थीं।
प्रजा ने राम से पुकार की। राम पर दवाव पड़ा। राम सीता को लाने के लिए तैयार हो गये। लक्ष्मण की तो हार्दिक इच्छा ही यह थी।
तुरन्त विमान तैयार हुआ। राम अपने अनुज लक्ष्मण, सेनापति कृतान्तवदन तथा अन्य खेचरों (विद्याधरों) के साथ सिंहनिनादक वन में आये । सेनापति ने वह स्थान बता दिया जहाँ कि वह सीताजी को छोड़ गया था।
सभी ओर खोज होने लगी परन्तु सीताजी का कहीं पता न लगा। निराश होकर सबने समझ लिया कि उन्हें व्याघ्र आदि कोई हिंसक
पशु खा गया होगा। - सभी अयोध्या लौट आये।
राम की आखें सदा आँसुओं से भरी रहतीं। उनका हृदय, वाणी, दृष्टि सभी कुछ सीतामय था ।
भाग्य की विडम्बना ही थी कि सीता जीवित थी और मरी समझ ली गई। यह कर्मदोष ही तो था कि राम भी सीता से मिलना चाहते थे और सीता तो राम की अनन्य भक्त थी ही, सांसारिक परिस्थितियाँ भी अनुकूल थीं, सभी चाहते थे कि राम सीता का मिलन हो किन्तु मिलन न हो सका ! राम को यह पता ही न लग पाया कि सीता वज्रजंघ राजा के घर रह रही है। .
-त्रिषष्टि शलाका ७६
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