Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राजा वनजंघ से मिलन
सेनापति के चले जाने के बाद सीता अपने स्थान से उठी और इधर-उधर भटकने लगी। वह उच्च स्वर से विलाप करती हुई एक ओर चलने लगी। उसकी अश्रुधारा रुक ही नहीं रही थी। मृत्यु और जीवन के बीच में झूलती हुई सीता को अचानक ही वन में कुछ सैनिक दिखाई दिये। पहले तो वह भयभीत हुई और फिर भय छोड़कर पंच परमेष्ठी का ध्यान करने लगी। ..
...... - उसको देखकर सभी सैनिक भयभीत हो गये। कहने लगे- 'यह
दिव्य रूप वाली स्त्री भूमि पर कैसे आ गई।' सैनिकों ने जाकर अपने ... राजा से कहा । राजा तुरन्त वहाँ आया और स्नेह भरे स्वर में कहने -लगा
-सुन्दरी ! इस गर्भावस्था में तुम्हें त्याग देने वाला वज्र हृदय पति कौन है, मुझे बताओ। ... . सीता मन-ही-मन पंच परमेष्ठी का स्मरण करती रही। उसने .. कोई उत्तर न दिया । राजा के मन्त्री सुमति ने कहा
-देवी ! यह पुण्डरीकपुर के स्वामी राजा वज्रजंघ परम श्रावक, महासत्ववान और परनारी सहोदर हैं। रानी बन्धुदेवी और राजा गजवाहन इनके माता-पिता हैं । इस वन में हाथी पकड़ने आये थे। अपना कार्य पूरा करके जा रहे थे कि आप दिखाई दे गईं।