Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विशल्या द्वारा स्पर्श-उपचार | ३७५ हूँ। इसलिए निकलकर जा रही हूँ। मुझे छोड़ दो। मेरे रोकने से तुम्हें कोई लाभ नहीं होगा। जानते नहीं, मैं महाशक्ति प्रज्ञप्ति की वहन हूँ।
-तो? ---तो क्या ? विशल्या की उपस्थिति में तो कुछ कर ही नहीं सकती। हनुमान ! व्यर्थ की वातों से कोई लाभ नहीं। बच्चों की सी उद्दण्डता मत करो । मुझे छोड़ दो और अपने कर्तव्य पालन की ओर ध्यान दो।
हनुमान ने शक्ति को छोड़ दिया। तुरन्त ही अमोघविजया अन्तर्धान हो गई।
विशल्या ने पुनः लक्ष्मण का स्पर्श किया और गोशीर्ष चन्दन आदि का लेप किया। लक्ष्मण का घाव भर गया। वे सचेत होकर उठ वैठे। अग्रज ने अनुज को कण्ठ से लगा लिया। विशल्या लज्जा से मुख नीचा किये बैठी रह गई।
लक्ष्मण ने राम से पूछा-तात ! यह स्त्रीरत्न और युद्ध-स्थल में ?
राम ने अनुज को विशल्या का सम्पूर्ण वृत्तान्त बता दिया । सभी घायलों पर विशल्या के स्नानजल का सिंचन किया गया । सैनिक
और सुभट स्वस्थ हो गये। ... चारों ओर विशल्या का जय-जयकार होने लगा। - राम की आज्ञा से वहीं लक्ष्मण का पाणिग्रहण विशल्या और उसके साथ आई एक हजार कन्याओं के साथ हो गया। - लक्ष्मण के पुनः जीवित होने और उनके विवाह के उपलक्ष्य उत्सव वडी धूमधाम से मनाया जाने लगा। राम की सेना हर्ष विभोर होकर उछलने-कूदने लगी। मंगल-वादित्र बजने लगे। हर्ष की लहर