Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रावण वध | ३८९ साथ पुष्प वृष्टि हुई। विस्मित से सभी राक्षस और वानर वीर ऊपर ' की ओर देखने लगे । देववाणी हुई
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विशेष-(१) उत्तरपुराण में राम-रावण युद्ध में दिनों का विभाजन नहीं किया गया है । केवल युद्ध के मध्य ही इतनी सूचना दी गई है।
इस तरह उस. युद्ध-स्थल में संग्राम होते-होते बहुत दिन व्यतीत हो गये।
(श्लोक ६०४) घटना क्रम इस प्रकार है
हनुमान के उत्पात के बाद भी रावण युद्ध हेतु लंका से बाहर नहीं निकला तो राम ने विभीषण से इसका कारण पूछा । विभीषण ने वताया कि रावण इस समय अपनी रक्षा के लिए इन्द्रजित को नियुक्त करके आदित्यपाद नामक पर्वत पर विद्या सिद्ध करने में लगा है। हमें इसी समय विघ्न करके लंका में प्रवेश कर जाना चाहिए।
राम की आज्ञा पाकर विद्याधर कुमार पहाड़ पर जाकर विघ्न करने लगे तो रावण ने अपने अधीन देवों को उनसे युद्ध करने की आज्ञा दी। देवों ने स्पष्ट उत्तर दिया कि 'आपका पुण्य कर्म क्षीण हो चुका है। इसलिए हम आपकी कोई सहायता नहीं कर सकते ।' और वे सव चले गये।
रावण क्रोधित होकर नगर में आया और सेना सजाकर युद्ध करने हेतु निकला।
इसके पश्चात युद्ध का वर्णन है।
भाग्य प्रतिकूल होने से रावण की सेना भंग होने लगी तो उसने सीताजी का मायामयी सिर राम के सामने फेंक दिया। राम बहुत दुःखी हुए । तव विभीषण ने बताया यह तो रावण की माया है।
(श्लोक ६११-६१२) उसके पश्चात माया युद्ध प्रारम्भ हुआ। रावण अपने ही चक्र से लक्ष्मण के द्वारा मारा गया।