Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४३४ | जैन कथामाला (राम-कथा)
सेवक धर्म के कठोरवन्धन से जकड़ा हुआ कृतान्तवदन सीताजी को रथ में विठाकर चल दिया । अत्यधिक दूर निकलकर वे गंगासागर को पार करके सिंहनिनादक वन में पहुंचे । निर्जन वन में रथ रोककर सारथी भूमि पर उतरा। शोक के कारण उसके आँसू बहने लगे। सीता ने उसे रोता हुआ देखकर पूछा
१ वाल्मीकि रामायण में
(१) सीता के अपवाद की सूचना भद्र नाम का व्यक्ति देता है।
(२) सीता को राम की आज्ञा से लक्ष्मण ऋषि वाल्मीकि के आश्रम के समीप छोड़ आते हैं।
(३) राम को एक पत्नीव्रत धारी माना गया है इसलिए सपलियों का प्रश्न ही नहीं उठता। वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]
तुलसीकृत रामायण के अनुसार
रजक (धोवी) अपनी पत्नी को डाँटते हुए व्यंग वचन कहता है । यह समाचार श्रीराम को उनका चर (नगर की दैनिक गतिविधियों की सूचना देने वाला अधिकारी) देता है । इसी पर राम अपने छोटे भाइयों को बुलाकर सीता को वन में छोड़ आने का आदेश देते हैं। छोटे भाई कारण जानना चाहते हैं तो राम कारण न बताकर कहते हैंआयसु मम टारइ जो ताता । रहै न प्राण तात मम गाता ।।
वन में सीता को छोड़ आने के पश्चात सभी माताओं का मरण दिखाया गया है । सभी माताओं को राम ने उनका मनचाहा वर दिया और तव योगाग्नि में भस्म होकर वे स्वर्गधाम चली गई। वर चटी सोइ सोइ दियौ मातहिं कारुणिक रघुपति सवै । मन सोधकर निज योग पावक तजा तनु सादर सवै ॥ योग अगनि तनु भस्म करि, सकल गई पतिधाम । भरत सत्रुसूदन लखन, शोक भवन भे राम ॥१८॥
[तुलसीकृत : रामचरितमानस, लवकुश काण्ड, दोहा 8-१८]