Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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, शत्रुघ्न के पूर्वभव | ४१५ 'यह सव उपद्रव चमरेन्द्र का फैलाया हुआ है। वह अपने मित्र मधु का बदला लेने को उत्सुक है । प्रजा के दुख से जब तुम्हारा मनोवल क्षीण हो जायगा तव वह तुम पर घात करेगा।' . कूल देवता की चेतावनी को सुनकर शत्रुघ्न राम-लक्ष्मण के पास अयोध्या आ गये।
इसी समय केवली देशभूषण और कुलभूषण जगत का उपकार करते हुए अयोध्या के वाहर उद्यान में आ विराजे ।
राम ने उनसे जिज्ञासा प्रगट की-स्वामी ! शत्रुघ्न ने मथुरा लेने का ही आग्रह क्यों किया ? देशभूषण केवली ने बताया
-राम शत्रुघ्न का जीव अनेक वार मथुरा नगरी में उत्पन्न हुआ है। इसी कारण इसका उस नगर पर विशेष मोह है। इसके पूर्वभव
सुनो
. किसी समय श्रीधर नाम का ब्राह्मणं था। वह रूपवान तो था ही साथ ही सदाचारी भी था। एक बार वह मार्ग पर चला जा रहा था। राजा को मुख्य रानी ललिता की उस पर दृष्टि पड़ गई। उसके मनोहर रूप को देखकर रानी के अंग में अनंग समा गया। सेवक भेजकर तुरन्त उसने उसे बुलवाया और रतिक्रीड़ा की इच्छा प्रगट करने लगी किन्तु उसकी इच्छा पूरी न हो सकी । वाधक वनकर राजा अचानक ही आ गया। रानी ने अपने बचाव के लिए शोर मचा दिया-चोर ! चोर !!
श्रीधर पकड़ा गया और उसे फांसी की सजा हुई। वधस्थान पर उसे राजसेवक ले गये। उस समय उसने व्रत लेने की प्रतिज्ञा की। कल्याण नाम के मुनि ने उसकी धर्म भावना देखकर छुड़ा