Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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विशल्या द्वारा स्पर्श-उपचार | ३७३ भामण्डल ने बताया
-भरत ! राम-रावण युद्ध में लक्ष्मणजी को शक्ति लग गई है। उन्हें सजीवन करने के लिए हमें विशल्या का स्नान-जल चाहिए।
-राम-रावण युद्ध ? लक्ष्मण को शक्ति ? यह क्या पहेली है ? स्पष्ट बताइए। -भरत ने संभ्रमित होकर पूछा।
-अभी समय नहीं है, फिर कभी पूछना । यदि सूर्योदय हो गया तो लक्ष्मणजी के प्राण नहीं वच सकेंगे। जल्दी करिए। -आतुरतापूर्वक भामण्डल ने कहा।
प्रिय भाई के प्राणों पर संकट आया जानकर भरत एकदम उछल कर खड़े हो गये।
--चलो मेरे साथ? – उनके शब्दों में चिन्ता झलकने लगी । -कहाँ ? -कौतुकमंगल नगर, जहाँ विशल्या रहती है।
भरतजी के इन शब्दों के साथ सभी विमान में बैठे और शीघ्र , गति से चलकर कौतुकमंगल नगर पहुंचे। मार्ग में भामण्डल ने सीताहरण से लेकर युद्ध तक की सभी बातें संक्षेप में बता दीं।
रात्रि को ही भरत ने मामा द्रोणमेघ को जगाया और विशल्या का स्नानजल माँगा। उनकी इस अकस्मात् मांग से द्रोणमेघ चकित रह गये । बोले-वत्स ! वात क्या है ? तुम घवराये हुए क्यों हो?
-लक्ष्मण युद्ध-स्थल में मूच्छित पड़े हैं। उन्हें सजीवन करने हेतु विशल्या का स्नानजल तुरन्त चाहिए। -भरत ने उत्तर दिया ।
--स्नानजल क्या, विशल्या को ही ले जाओ। लक्ष्मण ही तो