Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३३८ | जैन कथामाला (राम-कथा)
मान भंग के कारण रावण का चित्त खेद-खिन्न हो गया। - तव तक हनुमान के पदाघात से सम्पूर्ण लंका काँप उठी। राक्षस
पड़े।
४ तुलसीकृत रामायण में रावण का मुकुट-भंग श्रीराम के बाण से हुआ है।
सुवेल पर्वत पर खड़े होकर राम चन्द्रोदय का दृश्य देख रहे थे। तभी उन्हें दक्षिण दिशा में बादल और बिजली का भ्रम हुआ। विभीपण ने बताया- 'यह वादल और विजली नहीं है वरन् रावण का मुकुट और मन्दोदरी के कर्णफूल हैं।' यह सुनकर राम ने शर संधान किया और उस वाण से रावण का मुकुट तथा मन्दोदरी के कर्णफूल कट कर गिर
[लंका काण्ड, दोहा १३] - इसके बाद जब अंगद राम के दूत बनकर जाते हैं तो रावण के दर्पपूर्ण वचनों से उन्हें क्रोध आ जाता है। क्रोधित होकर जैसे ही अंगद ने अपने भुजदण्ड सभा भवन की भूमि पर मारे तो सम्पूर्ण सभा-भवन हिल गया और सभासद अपने आसनों से जमीन पर लुढ़क गये । रावण भी गिरते-गिरते वचा किन्तु उसका मुकुट जमीन पर आ गिरा।
अंगद ने लंकेश का मुकुट उठा कर फेंका तो समुद्र पार राम की सेना में आ गिरा।
[लंका काण्ड, दोहा ३२] अंगद का वल दिखाने के लिए भागे एक घटना और दी गई है
कुपित होकर वीर अंगद से अपना पैर रावण की सभा में जमा दिया और कहा-'यदि कोई सुभट मेरे पाँव को उठा देगा तो मैं सीताजी ' को हार जाऊँगा।' . - सभी राक्षस योद्धाओं ने अपना बल लगाकर देख लिया किन्तु वे . अंगद का पैर रंचमात्र भी न हिला सके ।
तव लंकेश स्वयं उठा । अंगद ने यह कहकर पांव उठा लिया कि 'मेरे पांव पकड़ने से क्या होगा ? श्रीराम के चरण पकड़, जिससे तेरा - उद्धार हो जाय ।
[लंका काण्ड, दोहा ३४-३५]