Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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: १४: संजीवनी बूटी
—मेरी भेंट श्रीराम से करा दो।
-इस समय वे भातृशोक से विह्वल हैं, उन्हें व्यर्थ ही परेशान करने की आवश्यकता नहीं।
-उनके शोक का उपाय मैं जानता हूँ । यदि लक्ष्मण को जीवित करना हो तो मेरी उनसे भेंट जरूरी है।
विद्याधर के ये शब्द सुनते ही भामण्डल उतावला हो गया। तुरन्त उस आगन्तुक विद्याधर को साथ लेकर राम के पास पहुंचा। श्रीराम को नमस्कार करके विद्याधर वोला
-यदि लक्ष्मण को सजीवन करना है तो विशल्या के स्नान जल से इनका अभिसिंचन कर दीजिए।
राम ने अपने हितैषी विद्याधर को कृतज्ञतापूर्वक देखा और उससे पूछा
-भद्र ! आप कौन हैं और मुझ पर यह प्रीति कैसे उत्पन्न हुई ? आगन्तुक विद्याधर वताने लगा
श्रीराम ! मैं संगीतपुर के राजा शशिमण्डल और रानी सुप्रभा का पुत्र हूँ। मेरा नाम प्रतिचन्द्र है। एक बार स्त्री सहित मैं आकाश मार्ग से जा रहा था कि सहस्रविजय विद्याधर ने मुझे देख लिया।