Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३५२ / जैन कथामाला (राम-कथा) लड़ा। दोनों वीर वार-बार धनुष्टंकार करके एक-दूसरे पर वाण वर्षा करते । अनेक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते हुए परस्पर युद्ध करते रहे । अन्त में जवानी जीती और बुढ़ापा हार गया। हनुमान ने माली के सभी अस्त्रों को विफल करके उसे अस्त्रहीन कर दिया। निःशस्त्र माली स्तम्भित सा खड़ा रह गया । हनुमान ने कहा___-अरे वृद्ध राक्षस ! यहाँ से चले जाओ। तुम्हें मारकर क्या बल दिखाना ?
माली तो कुछ बोल नहीं सका किन्तु वज्रोदर राक्षस सामने आकर कहने लगा-अरे पापी ! वृद्ध मालों को क्या पराक्रम दिखाता है । मेरे साथ युद्ध कर ।
वज्रोदर के इन शब्दों का उत्तर दिया हनुमान की क्रोध भरी हुंकार ने । दोनों के शस्त्र परस्पर टकराने लगे। वाण युद्ध में दोनों ने एक-दूसरे को मानो ढक ही दिया।
आकाश से युद्ध देखने वाले देवों के मुख से सहसा निकला'अहो ! वीर हनुमान और वज्रोदर समान पराक्रमी हैं । एक- . दूसरे के लिए समर्थ और शक्तिशाली प्रतिद्वन्द्वी है।'
पराक्रमी पुरुष किसी को भी अपने समान नहीं समझते । देववाणी ने हनुमान को उत्तेजित कर दिया। उन्होंने तीक्ष्ण शस्त्र-प्रहार करके वज्रोदर को यमपुर पहुंचा दिया।
१ यह वृद्ध माली विख्यात जगत्प्रसिद्ध राक्षस राजा माली नहीं था। वह
तो इन्द्र के साथ युद्ध में ही मारा गया था। यह अवश्य ही कोई अन्य वृद्ध वीर होगा जो इस राम-रावण युद्ध में हनुमान के प्रतिद्वन्द्वी के रूप . में रावण की ओर से आया और पवनपुत्र ने उसका पराभव कर दिया ।
-सम्पादक