Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
३६२ / जैन कथामाला (राम-कथा) देखते हुए देव भी न ठहर सके। वे भी इधर-उधर खिसक गये। राक्षस और वानर सैनिकों की आँखें चुंधिया गयीं। तभी राम ने लक्ष्मण से कहा
-~-भाई ! यह शक्ति अमोघ है। यदि विभीषण मारा गया तो हमारी शरणागत वत्सलता को धिक्कार है। संसार यही कहेगा कि ‘ राम अपने शरणागत की रक्षा न कर सका। ___ लक्ष्मण ने अग्रज को कोई उत्तर नहीं दिया। बस सिर झुकाकर चले और विभीषण के आगे जाकर खड़े हो गये । रावण एकदम वोल पड़ा
-अरे लक्ष्मण ! तुम क्यों बीच में आ गये ? मैं तो विभीषण को मारना चाहता हूँ।
लक्ष्मण ने उत्तर दिया- . -रावण ! शरणागत की रक्षा करना मेरा धर्म है। -व्यर्थ ही प्राण चले जायेंगे। -क्षात्र धर्म का पालन तो हो जायगा। -नहीं हटोगे। -कदापि नहीं।
~तो विवशता है। यह कहकर रावण ने अमोघविजया शक्ति छोड़ दी।
धकधकाती हुई शक्ति लक्ष्मण की ओर जाने लगी। मार्ग में सभी वीरों ने अपने-अपने अस्त्रों से उसे रोकने की बहुत चेष्टा की किन्तु सम्पूर्ण प्रयास निष्फल हो गये। शक्ति लक्ष्मण के वक्षस्थल से . टकराकर उनके शरीर में प्रवेश कर गई और वे मूच्छित होकर जमीन पर गिर पड़े। राम की सेना में भयंकर हाहाकार मच गया। ___अनुज के गिरते ही राम तीव्र क्रोध में महाज्वाल की भांति जल "उठे। वे पंचानन रथ में बैठकर रावण के सम्मुख पहुंचे और तीव्र