Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
३५४ | जैन कथामाला (राम-कथा) प्रहार से सुग्रीव का रथ भंग कर दिया। वानरराज आकाश में उड़ा
और उस पर एक बड़ी शिला फेंक दी । कुम्भकर्ण ने मुद्गर-प्रहार से शिला को चूर्ण कर दिया और शिला के छोटे-छोटे खण्ड चारों ओर विखर गये।
शिला को खण्ड-खण्ड होते और कुम्भकर्ण को अक्षत देखकर सुग्रीव को क्रोध चढ़ आया। उसने महाप्रचण्ड विद्युत्दण्ड अस्त्र का प्रहार कुम्भकर्ण पर कर दिया।
महाउन विद्युत्दण्ड तड़-तड़ की ध्वनि करता हुआ कुम्भकर्ण की ओर चला । उसका प्रतीकार करने हेतु उसने अनेक अस्त्र छोड़े किन्तु सव निष्फल हुए । कुम्भकर्ण भूमि पर मूच्छित होकर गिर गया।
भाई कुम्भकर्ण के मूच्छित होते ही रावण क्रोधित होकर युद्ध की ओर जाने लगा। उसी समय इन्द्रजित ने आकर विनम्र स्वर में कहा___-पिताजी ! आपके सम्मुख यम, वरुण, इन्द्र, कुवेर जैसे पराक्रमी न ठहर सके । इन वानरों के समक्ष आपका जाना क्या उचित है ? ' आप यहीं रहे और मुझे आज्ञा दें।
यह कहकर इन्द्रजित वानर सेना के मध्य में प्रवेश कर गया। उसका मुकाबला हुआ वानरराज सुनोव से । इन्द्रजित का छोटा भाई मेघवाहन आगे बढ़ा तो भामण्डल न उसे रोक लिया। चारों सुभट प्रलयदूत के समान युद्ध करने लगे। सामान्य और दिव्यास्त्रों से वहुत समय तक युद्ध होता रहा किन्तु कोई भी विजयी न हो सका । प्रतिपक्षी के अस्त्रों का प्रतिकार तुरन्त ही दूसरा पक्ष कर देता। अन्त में मेघवाहन और इन्द्रजित ने नागपाश छोड़ा। भामण्डल और सुग्रीव दोनों उस पाश में जकड़ गये । बन्धन इतने कठोर और दृढ़ थे कि उन्हें साँस लेना भी कठिन हो गया। वानर सेना में हाहाकार मच गया।