Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३३६ / जैन कथामाला (राम-कथा) पाप का फल तुम्हारे साथ-साथ परिवार को भी भोगना पड़ेगा। -हनुमान ने उत्तेजित होकर कहा।
दर्प मण्डित दशमुख को हनुमान के शब्द तीर से लगे। कुपित. होकर बोला
-जाओगे तो सही, उससे पहले लंका का प्रसाद तो लेते जाओ। और अपने सुभटों को आदेश दिया
-इस दुविनीत को काला मुंह करके गधे पर चढ़ाओ और सारी लंका में घुमाओ । राक्षस-लोग इसे देख-देखकर प्रसन्न होंगे। बच्चे किलकारियाँ भर-भरकर उछलेंगे-कूदेंगे और हाँ सीता को अवश्य दिखाना जिससे उसे मेरी शक्ति और राम तथा रामदूत हनुमान कीअशक्तता का विश्वास हो जाय। .
रावण का दर्प हनुमान को खल गया। उन्होंने समझ लिया कि यह लातों का भूत वातों से नहीं मानेगा। इसे अपना वल दिखाना - ही पड़ेगा।
बलधारी ने वल लगाया। नागपाश कच्चे धागे के समान.टूट , गया । अचानक बिजली सी कौंधी। वीर हनुमान का सुवर्ण शरीर उछला और सीधा लंकापति के सिंहासन पर जा पहुंचा । विद्युत वेग से हाथ बढ़े। रावण का मुकुट उतर गया। मणिजटित स्वर्ण मुकुट जमीन पर गिर गया और कन्दुक के समान उछलकर एक ही पदाघात में उसका चूरा कर दिया अंजनीनन्दन ने ।
संभ्रमित होकर रावण चीख पड़ा-अरे कोई पकड़ो, मारो इस दुष्ट को।
किन्तु तव तक हनुमान वहाँ कहाँ थे। वे तो राजसभा से निकल . कर लंका के राजमार्ग में आ चुके थे।
पलक झपकते ही जैसे जादू सा हो गया था। सभी आश्चर्य