Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सीताहरण | २७६ कहाँ निहत्था पक्षी जटायु और कहाँ महावली लंकेश और वह भी सशस्त्र । कुछ क्षणों में ही लहूलुहान होकर भूमि पर गिर पड़ा। रावण ने खड्ग प्रहार से पंख काट दिये थे उसके ।
उसकी आँखों के सामने ही रावण सीता को पुष्पक विमान पर बिठाकर ले चला । अपनी विवशता पर आँसू बहाने लगा जटायु ।
पुष्पक विमान आकाश में चला जा रहा था और सीता आर्तनाद कर रही थी-'हा नाथ राम ! अरे वत्स लक्ष्मण ! मुझे बचाओ। भाई भामण्डल ! तुम्हारी विद्याएँ कब काम आयेंगी ? आज तुम्हारी वहन को छलपूर्वक यह दुष्ट लिए जा रहा है।'
सोता का रुदन आकाश में गूंज रहा था। मार्ग में अर्कजटी के पुत्र रत्नजटी ने सीता का रुदन सुना तो सोचा-'अवश्य ही यह
वाल्मीकि रामायण के अनुसार
(१) खर की सेना से भागकर आये हुए राक्षस अकम्पन ने रावणको भड़काया था।
(अरण्यकाण्ड) (२) मारीच समुंद्र तट पर एक आश्रम बनाकर वहाँ तपस्या किया करता था।
(अरण्यकाण्ड) (३) मारीच ने कपट मृग का रूप धारण किया। उसके पीछे राम जाते हैं । मृग ने मरते समय 'हा लक्ष्मण' कहा। यह पुकार सुनकर सीता ने कठोर वचनों से प्रहार करके लक्ष्मण को भेज दिया। नोट- यहाँ लक्ष्मण द्वारा रेखा खींचने का कोई उल्लेख नहीं है।
सम्पादक (४) हरण होने से पहले सीता और रावण का परस्पर विवाद दिखाया गया है।
(अरण्यकाण्ड) तुलसीकृत रामचरित मानस में भी इस घटना का उल्लेख इसी प्रकार हुआ है।