Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२८० | जैन कथामाला (राम-कथा) राम की पत्नी सीता है जिसको लंका का राजा रावण वलपूर्वक लिए जा रहा है। इस समय मैं अपने स्वामी भामण्डल की वहन की रक्षा करूं।'
रत्नजटी तलवार खींचकर रावण की ओर बढ़ा और ललकार कर बोला
–छोड़ दे इस सती को। -नहीं तो तू क्या कर लेगा?
-मैं....."मैं तुझे मार डालूँगा । जानता नहीं अनेक विद्याओं का स्वामी हूँ। -रत्नजटी ने अपना विद्यावल बखानते हुए कहा।
हो-हो करके हँस पड़ा लंकेश ! व्यंगपूर्वक वोला
-नाम नहीं सुना मेरा ! जिसके नाम से समस्त दक्षिण भरतार्द्ध कांपता है, सम्पूर्ण मानव और विद्याधर समूह जिसके अधीन हैं, अनेक देव जिसके वश में होकर दासों की भाँति सेवा करते हैं वह त्रिखण्ड विजयी लंकापति रावण हूँ मैं । अब तुम चुपचाप चले जाओ। मेरे मार्ग में मत आओ।
-मार्ग तो मैं तुम्हारा तभी छोडूंगा जब तुम सीता को छोड़ दोगे। रावण वोला
-देखो विद्याधर ! मुझे व्यर्थ का रक्तपात पसन्द नहीं है। किसी के प्राण लेना और वह भी अकारण मेरी नीति के विरुद्ध है । मैं तुम्हें एक छोटा-सा दण्ड दिये देता हूँ।
यह कहकर महावली लंकेश ने रत्नजटी की सारी विद्याएँ हरण कर ली। परकटे पक्षी की भाँति रत्नजटी भूमि पर आ गिरा और असमर्थ सा कम्बुगिरि पर रहने लगा।
रावण का विद्यावल देखकर सीता गम्भीर विचार में निमग्न हो गई । लंकेश ने समझा कि सती उसके वल से प्रभावित हो गई है। दोन्नत मुख लेकर वोला