Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सीता पर उपसर्ग
पाताल लंका से भाग कर चन्द्रनखा अपने पुत्र सुन्द के साथ लंकापूरी में जा पहँची । अन्त:पुर में भाई रावण के समक्ष वहन चन्द्रनखा फूट-फूटकर रोने लगी। काफी देर तक धैर्य बंधाने के बाद चुप हुई और अपने शोक का कारण बताया
-भाई ! मेरे पति, पुत्र, दोनों देवरों (त्रिशिरा और दूषण) को चौदह कुलीन सामन्तों सहित लक्ष्मण ने मार गिराया है। उसने पाताल लंका का राज्य विराध को दे दिया और मुझे अपने पुत्र सुन्द के साथ वहाँ से प्राण वचाकर भाग आना पड़ा।
रावण ने आश्वासन दिया
---बहन ! तुम्हारे पति और पुत्र के हत्यारे को शीघ्र ही मार गिराऊँगा । शोक मत करो।
चन्द्रनखा आश्वस्त हो गई। XXX
सीता का आकर्पण रावण के शरीर को दावानल की भाँति जला रहा था। उसे न रात को नींद थी, न दिन को चैन । पटरानी उसकी ऐसा दशा देखकर चिन्तित हो गई । मन्दोदरी से जब न रहा गया तो एक रात को पति के शयन कक्ष में जा पहुंची। देखा-लंकेश