Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
३०६ / जैन कथामाला (राम-कथा)
इन भयंकर उपसर्गों और आवाजों का रहस्य मन्त्री विभीषण को ज्ञात हुआ तो प्रातः ही सीता के पास आकर पूछा. -देवि ! आप कौन हैं और यहाँ कैसे आ गईं ? मैं पर-स्त्री का सहोदर हूँ-निर्भय होकर मुझे सब कुछ स्पष्ट बताओ।
सहोदर शब्द सुनकर जानकी आश्वस्त हुई और कहने लगी
-मैं जनक राजा की पुत्री जानकी हूँ और लंकापति मुझे उठा__ कर ले आया है।
-पूरा परिचय वताओ भद्र ! -विभीषण ने आग्रह किया। . सोता ने बताया
-मैं मिथिलापति राजा जनक की पुत्री हूँ और विद्याधर . भामण्डल मेरे भाई हैं । दशरथ पुत्र राम मेरे पति हैं।
-क्या कहा ? दशरथ पुत्र राम ! -विभीषण ने चौंक कर बीच - में ही पूछा । वह तो दशरथ को अपने विचार से मार ही आया था. फिर यह पुत्र कहाँ से आ गया ? वह चकित था।
-हाँ अयोध्यापति सूर्यवंशी महाराज दशरथ की मैं पुत्रवधू हूँ। चिन्तित हो गया विभीषण । अपनी चिन्ता छिपाकर बोला--आगे वताओ सुन्दरी, फिर क्या हुआ? सीता बताने लगी
-मैं अपने पति और देवर के साथ दण्डकवन में आई। वहाँ अनजाने में ही देवर के हाथों एक तपस्वी की हत्या हो गई । वे पश्चात्ताप कर ही रहे थे कि एक स्त्री वहाँ आकर उनसे कामयाचना करने लगी। जव मेरे पति और उनके अनुज ने उसकी कामयाचना ठुकरा दी तो वहुत बड़ी सेना लेकर एक राजा उन पर चढ़ आया। अनुज लक्ष्मण तो उससे युद्ध करने चले गये और पति मेरे पास ही. बैठे थे । इतने में मुझे अपने देवर का सिंहनाद (सहायता के लिए