Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सीता पर उपसर्ग | ३०५ .' -आज आपने सतीधर्म को कलंकित कर दिया है । जव आप जैसी सती मोहान्धकार में ग्रसित होकर अपनी मर्यादा और धर्म का मर्म भूला बैठी तो अब लंका और लंकेश का विनाश अवश्यम्भावी है। इसे कोई नहीं रोक सकता।
सती के शब्दों को सुनकर मन्दोदरी कांप गई। वह पश्चात्ताप की अग्नि में जलती हुई उठी और वापिस चल दी। ___मन्दोदरी गई तो लंकेश आ गया। उसकी आज्ञा से दासियों ने, सीता को बलात पुष्पक विमान में बिठा दिया। रावण आकाश मार्ग से चला और लंका की समृद्धि दिखाने लगा। वह अपनी समृद्धि और शक्ति का वखान कर रहा था किन्तु सीता जैसे कुछ सुन ही नहीं रहो थी । बुत बनी बैठी रही-हृदय में श्रीराम के चरणों का ध्यान करती
जव रावण ने देखा कि उसकी बातों का सीता पर कोई प्रभाव नहीं हो रहा है तो उसे देव-रमण उद्यान के अशोक वन में उतारकर चला आया।
___सीता जब समझाने से नहीं मानी तो रावण ने विद्यावल का सहारा लिया। रात्रि के अन्धकार में सीता पर अनेक प्रकार के उपसर्ग होने लगे। विद्याएँ अनेक विकराल रूप धारण करके उसे डराती रहीं-कभी सर्प का रूप धारण करके तो कभी सिंह का । किन्तु सती महामन्त्र नवकार का जाप करती रही। इस मन्त्र के अचिन्त्य प्रभाव से कोई विद्या उसे छू न सकी। दूर से ही भूत-प्रेत-पिशाच-वैताल अपने भयंकर रूप दिखाते रहे किन्तु उसके पास आने का साहस न । कर सके। , . .कालरात्रि के समान महा भयंकर अँधेरा प्रातःकालीन सूर्य किरणों के प्रभाव से छंट गया। उपसर्ग समाप्त हुए। सती अब भी पंचपरमेष्ठी के ध्यान में लीन थी। ... .