Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३२४ | जैन कयामाला (राम-कथा)
वज्रमुख की मृत्यु से उसकी कन्या लंकासुन्दरी कुपित हो गई। उसे अपने विद्यावल का बहुत अभिमान था। वह वीर हनुमान पर विद्यावल से प्रहार करने लगी। हनुमानजी ने कुछ समय तक तो उसकी चतुराई देखी और फिर उसे परास्त कर दिया।
___ इस प्रकार अपने बुद्धि वल से सुरसा को पराजित करके हनुमान आगे बढ़ गये। "
[सुन्दरकाण्ड] ३ यहाँ लंकासुन्दरी का नाम लंकापुरी दिया है और उसे लंकानगरी का ही
राक्षसी रूप माना है । वह हनुमान को तमाचा (थप्पड़) मारती है और हनुमान उसे मुष्टिका प्रहार से व्यथित कर देते हैं। तब वह हनुमान को लंका प्रवेश करने की अनुज्ञा देती है और राक्षसों के नाश की आशंका प्रगट करती है।
[सुन्दरकाण्ड तुलसीकृत रामचरितमानस में सुरसा को वुद्धि बल से परास्त करके. आगे बढ़ने पर छायाग्राही राक्षसी से मुठभेड़ का वर्णन है । वह राक्षसी आकाश में उड़ते हुए पक्षियों आदि की समुद्र जल में गिरती छाया को ही पकड़ लेती थी जिससे वे उड़ नहीं पाते थे और समुद्र में गिर पड़ते थे। इस प्रकार वह राक्षसी समुद्रजल में रहकर ही अपना आहार प्राप्त कर लेती थी। हनुमानजी ने उसका कपट जान लिया और उसे मारकर आगे बढ़ गये। [तुलसी : सुन्दरकाण्ड, दोहा ३] - लंकापुरी का नाम लकिनी दिया है।
[तुलसी : सुन्दरकाण्ड, दोहा ४] ४ यहाँ सागर तट पर वानर-भालू हनुमान को उनके बल की याद दिलाते
हैं तभी हनुमान को अपने विस्मृत बल का ध्यान आता है और वे सागर संतरण को प्रस्तुत होते हैं । वानर भालुओं ने यहाँ हनुमान के वल का वर्णन करते हुए उनकी स्तुति की है।
[तुलसी एवं वाल्मीकि रामायण, किष्किधाकाण्ड]