Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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नकली सुग्रीव | २६६ --आपके स्वागत में मैं क्या करूं? – सुग्रीव ने पुनः पूछा।
-कुछ नहीं वानरेन्द्र ! सीता की खोज के अतिरिक्त मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
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मैंने समझा कि उस दानव ने वाली को मार डाला है। इसलिए गुफाद्वार पर भारी पत्थर रखकर किष्किधा लौट आया और राज्य करने लगा।
. परन्तु स्थिति विपरीत थी । मृत्यु बाली की नहीं, उस दानव की और उसके समस्त परिवार की हुई थी। कुछ दिनों बाद अग्रज आये । उन्होंने समझा कि राज्यलिप्सा के कारण मैंने कन्दरा का द्वार बन्द करके उन्हें मार डालने की चेष्टा की थी। इसी भ्रान्त धारणा के कारण उन्होंने कुपित होकर मुझे निकाल दिया और मेरी पत्नी रुक्माभा भी
छीन ली।
. मैं निराश होकर इस ऋष्यमूक पर्वत पर चला आया क्योंकि मतंग ऋषि के शाप से वाली यहाँ नहीं आ सकता। [किष्किधाकाण्ड]
- (५) यहाँ भी वाली के बल का वर्णन करते हुए बताया गया है. कि वह पूर्व-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण समुद्र पर्यन्त पृथ्वी पर प्रतिदिन घूम आता है और थकता नहीं।
[किष्किधाकाण्ड] .. (६) बाली के पुत्र का नाम अंगद है और सुग्रीव ने अपने सिंहासनारोहण के बाद उसे ही अपना युवराज बनाया। [किष्किधाकाण्ड] (७) वाली का वध श्रीराम ने छिपकर अपने तीर से किया । : . १
[किष्क्रियाकाण्ड] यहाँ वाली और सुग्रीव का युद्ध दिखाया गया है। साहसगति विद्याधर का कोई उल्लेख नहीं है।
-सम्पादक (८) वाली और सुग्रीव दोनों के पिता का नाम ऋक्षराज बताया.
[किष्कियाकाण्ड]