Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२८६ | जैन कथामाला (राम-कथा) ___ 'वासुदेव के सम्मुख प्रतिवासुदेव की शक्ति तो कम होती ही है किन्तु खर राक्षस की शक्ति प्रतिवासुदेव से अधिक है। ___ आकाशवाणी सुनकर लक्ष्मण ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और क्षुरप्र अस्त्र से खर का मस्तक छिन्न कर डाला।
खर की मत्यु के पश्चात उसका भाई दूपण युद्ध करने लगा किन्तु वह भी मारा गया। ___ समस्त शत्रु-सेना का संहार करने के पश्चात लक्ष्मणजी विराध को साथ लेकर राम के पास आये। राम को वृक्ष के नीचे अचेत दशा में पड़ा देखकर वे विह्वल हो गए। शीतोपचार से जव श्रीराम सचेत हुए तो सीताहरण की बात सुनकर लक्ष्मण बोले
—आर्य किसी मायावी ने ही मेरे स्वर में सिंहनाद किया और अकेली पाकर सीता माता का हरण कर ले गया। मैं उस दुष्ट का हनन करके अवश्य उनको वापिस लाऊँगा। चलें, उनकी खोज करें।
राम ने विराध को देखकर पूछा-अनुज ! तुम्हारे साथ यह भद्र युवक कौन है ? लक्ष्मण ने बताया' –तात ! इसका पिता पहले पाताल लंका का स्वामी था । खर 'ने उसे निष्कासित कर दिया और स्वयं राजा बन बैठा । मैंने इसे वचन दिया है कि पाताल लंका के सिंहासन पर इसे बिठाऊँगा।
विराध ने अपने अधीन विद्याधरों को सीताजी की खोज में भेजा किन्तु सभी निराश लौट आये । उन्हें लज्जित देखकर राम ने उनको आश्वस्त किया
१ खर-दूपण का वध श्रीराम ने किया था।
[वाल्मीकि रामायण एवं तुलसीकृत रामायण, अरण्यकाण्ड]