Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सीताहरण | २७७ सीता का प्रेम लक्ष्मण पर पुत्रवत् था। जानकी ने आग्रहपूर्वक राम को वहाँ से भेज ही दिया।
राम के जाते ही सीता अकेली रह गई। वह पुत्रवत् देवर लक्ष्मण और पति की मंगल-कामना करने लगी। अवसर देखकर रावण ने विचारमग्न जानकी को उठाया और चल दिया। सीता उसकी मजबूत पकड़ से छूटने के लिए छटपटाने लगी।
१ उत्तर पुराण में सीताहरण के निमित्त मारीच के मणिमय हरिण बनने की घटना का वर्णन है।
दूती सूर्पणखा के वचन सुनकर रावण अपने मन्त्री मारीच को साथ लेकर पुष्पक विमान द्वारा चित्रकूट उद्यान में जा पहुँचा । रावण की आज्ञा से मारीच ने मणिमय हरिण-शावक का रूप धारण किया और सीता के सामने होकर निकला। सीता ने मृग को पकड़ लाने का राम से हठ किया तो राम उसके पीछे चले गये। मायावी हरिण उन्हें वहुत दूर ले गया।
इसी बीच रावण ने पुष्पक विमान को पालकी का रूप दिया और स्वयं राम का रूप रखकर सीता के पास आकर वोला-'हरिण तो मैंने पकड़कर सेवकों को दे दिया है । अव सन्ध्या का समय हो रहा है । इस पालकी में वैठो । नगर की ओर चलें।'
सीता उस पालकी में बैठ गई। रावण उसे लंका में ले आया तव उसने उसके समक्ष अपना असली रूप प्रगट किया।
जानकी इस आकस्मिक विपत्ति से अचेत हो गई । विद्याधारियों के शीतोपचार से सचेत हुई तो उसने अभिग्रह धारण किया 'जब तक रामचन्द्र की कुशल-क्षेम न सुन लूंगी, तब तक न कुछ बोलूंगी और न कुछ खाऊँगी।
उसी समय रावण की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ।