Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२०८ | जैन कथामाला ( राम-कथा)
राम-लक्ष्मण सीता से विदा लेकर कैकेयी, भरत और सामन्त आदि अयोध्या वापि लौट आये । भरतजी स्वयं को रक्षक मानते हुए अयोध्या का शासन चलाने को तत्पर हो गये ।
राजा दशरथ इस व्यवस्था से सन्तुष्ट होकर अन्य अनेक पुरुषों के साथ महामुनि सत्यभूति के पास जाकर दीक्षित हो गये और उग्र तपस्या करने लगे ।
सीता और लक्ष्मण के साथ श्रीराम चित्रकूट पर्वत को पार करके अवन्ती देश के एक भाग में जा पहुँचे ।
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- उत्तर पुराण पर्व ६८।५०-८३ - त्रिषष्टि शलाका ७१४
१ उत्तर पुराण में राम-लक्ष्मण जानकी के वन-गमन का उल्लेख नहीं है । वहाँ वनारस नगर जाने की बात कही गई है
एक दिन अवसर देखकर दोनों भाई राजा दशरथ से कहने लगे ' कि हमारे पूर्वजों को परम्परा से बनारस नगर हमारे अधीन हो चला आ रहा है। यदि आप आज्ञा दें तो हम दोनों वहाँ जाकर उसे पुनः सुशोभित कर दें । (६८।५१-५२ ) आशीर्वाद देकर राजा दशरथ ने उन दोनों को वहाँ भेज दिया । ( श्लोक ८० ) उन दोनों भाइयों का बनारस में समय प्रजा को सुख देने में व्यतीत होने लगा | (श्लोक ८३)