Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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केवली कुलभूषण और देशभूषण | २४७ जान कर ये यहाँ आये किन्तु तव तक तुम्हारे कारण हमारा उपसर्ग दूर होकर हमें केवलज्ञान की प्राप्ति ही चुकी थी। .. :
राम को सम्बोधित करके केवली भगवान ने कहा
-हे राम ! मैं कुलभूपण हूँ और ये देशभूषण। पूर्वभव की शत्रता के कारण ही देव अनलप्रभ हम पर पिछली तीन रातों से उपसर्ग करता रहा था।
धर्म सभा में महालोचन गरुड़पति देव भी उपस्थित था। उसने श्रीराम का उपकार मानते हुए कहा___-तुमने यहाँ आकर वहुत अच्छा किया । मैं तुम्हारे इस उपकार का वदला किस प्रकार चुकाऊँ ? श्रीराम ने विनम्रतापूर्वक कहा-मेरा कोई कार्य नहीं है । आप मेरे लिए कुछ भी मत करिए।
-मैं किसी न किसी तरह तुम्हारे इस उपकार का बदला अवश्य चुकाऊँगा। -महालोचन ने राम को अपना निश्चय बताया।
देव केवली के चरणों में नत हुआ और अन्तर्धान हो गया।
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१ इस घटना से पहले एक वार अनलप्रभ देव कौतुक देखने के लिए केवली
अनन्तवीर्य के केवलज्ञान महोत्सव में गया था। वहाँ किसी शिष्य ने उनसे पूछा-'प्रभु ! आपके पश्चात मुनिसुव्रत स्वामी के तीर्थ में केवली कौन होगा ?' तो केवली भगवान ने बताया-'मेरे निर्वाण के बाद कुलभूपण-देशभूषण दो भाई केवली होंगे।' उनकी वाणी को मिथ्या सिद्ध करने के लिए इस घोर मिथ्यात्वी देव अनलप्रभ ने मुनि कुलभूषण-देशभूषण पर घोर उपसर्ग किया।
-त्रिषष्टि शलाका ७.५ गुजराती अनुवाद, पृष्ठ ६३