Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२५८ | जन कथामाला (राम-कथा) राजा दण्डक ही दोपी दिखाई देता। पति पर उसका क्रोध सीमा को पार करने लगा।
शासन देवी ने सहायता की उसकी और उसे वहाँ से उठाकर भगवान मुनिसुव्रत के समवसरण में पहुंचा दिया। पुरन्दरयशा की कषायें शान्त हो गई और उसने प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
अग्निकुमार देवों में उत्पन्न आचार्य स्कन्दक ने अपने पूर्वभव का वृत्तान्त अवविज्ञान से जाना तो दावानल की भाँति भड़क उठे। उनकी कोपाग्नि में पालक और दण्डक सहित सम्पूर्ण नगर-निवासी जलकर खाक हो गये।
तभी से इस स्थान का नाम दण्डक वन पड़ गया और यह समस्त भरतक्षेत्र में सर्वाधिक भयंकर और संकटास्पद स्थान माना जाने लगा।
दण्डक राजा अनेक पाप योनियों में भटकता हुआ यह गन्व पक्षी वना। __ मुनिश्री ने राम को सम्बोधित किया
-हे राम ! इस गीव को हमें देखकर जातिस्मरणज्ञान हुआ और इसी कारण इसकी चित्त वृत्ति शान्त हो गई हैं।
श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण और पत्नी सीता सहित इस दारुण दुःखद घटना को सुनकर बहुत खेदखिन्न हुए। पक्षी भी अपने पापों का पश्चात्ताप करता हुआ वार-बार मुनि चरणों में लोटने लगा।
मुनिश्री ने कल्याणकारी धर्मदेशना दी जिससे सभी सन्तुष्ट हुए ।
गीव आन्खें खोले उनकी ओर टुकुर-टुकुर देख रहा था। वह मानवों की सी भाषा बोलने में असमर्थ था। हृदय के भाव आँखों द्वारा ही व्यक्त करने लगा।