Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रामपुरी में चार मास | २२३ करुणासिन्धु राम आ गये हैं । उनसे भयभीत मत हो । वे तो पूज्यनीय हैं।
-स्वामी ! वे क्यों पूज्यनीय हैं ?
-ईभकर्ण ! श्रीराम और लक्ष्मण इस भरतक्षेत्र के आठवें वलभद्र और वासुदेव हैं।
यह कहकर यक्ष गोकर्ण वटवृक्ष के पास आया और श्रीराम को प्रणाम करके बोला
-हे स्वामी ! आप मेरे अतिथि हैं। मैंने आपके स्वागत में इस नगरी की रचना की है। इसमें पधारिये और मुझे सेवा का अवसर दीजिए।
• राम ने दृष्टि उठाई तो बारह योजन लम्बी और नौ योजन विस्तार वालो समृद्ध नगरी दृष्टिगोचर हुई । उन्होंने पूछा
--भद्र आप कौन हैं ? यक्ष ने बताया
-स्वामी ! मैं गोकर्ण नाम का यक्ष हूँ। यह नगरी मैंने ही आपके निमित्त वसाई है । आप इसमें चलकर रहिए। मैं सपरिवार आपकी सेवा करूंगा।
यक्ष के आग्रह को स्वीकार कर राम-लक्ष्मण और सीता तीनों सुखपूर्वक राज-प्रासाद में रहने लगे।
एक वार कपिल ब्राह्मण अपने यज्ञ के लिए समिधा (यज्ञ में जलाने की लकड़ी, ईधन) लेने के लिए वन में आया तो इस समृद्ध नगरी को देखकर आश्चर्यचकित रह गया। वह सोचने लगा-'यह इन्द्रजाल है अथवा देवमाया।'