Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२२४ | जैन कथामाला (राम-कथा)
वह इन्हीं विचारों में निमग्न खड़ा था कि सामने एक स्त्री रूप धारिणा यक्षिणी दिखाई दी । कपिल ने उससे पूछा
-भद्रे ! यह नवीन नगरी किसकी है ? -~-ब्राह्मण ! गोकर्ण यक्ष ने यह नवीन नगरी श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के निवास हेतु निर्मित की है। यहीं रहकर दयानिधि राम याचकों को यथेच्छ दान देते हैं। जो भी दीन-दुःखी यहाँ आता है उसके मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। यक्षिणी ने बताया। __ मनोरथ पूर्ण होने की बात सुनकर कपिल के मुंह में पानी भर आया। उसने समिधा का वोझा जमीन पर फेंका और विनम्र स्वर में पूछने लगा
-श्रीराम के दर्शन मुझे किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं ? ----इस नगर के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं और प्रत्येक पर एक यक्ष पहरा देता है । अतः नगरी में प्रवेश करना दुर्लभ है।
-कोई उपाय वताओ। कपिल के स्वर में याचना थी।
हाँ, एक उपाय है । महामन्त्र नवकार का जाप करते हुए यदि श्रावक के रूप में पूर्व द्वार से प्रवेश कर सको तो तुम्हें कोई भी नहीं रोकेगा। -यक्षिणी ने उपाय बता दिया। .
कपिल जैन साधुओं के पास गया और धर्मोपदेश सुनने लगा। यद्यपि उसका उद्देश्य धन-प्राप्ति था किन्तु सत्य धर्म ने उसको बहुत प्रभावित किया। उसने जिनधर्म स्वीकार कर लिया। स्वयं भी श्रावक वना और पत्नी को भी श्राविका वनने की प्रेरणा दी। सुशर्मा (कपिल की पत्नी) पहले ही शान्त स्वभाव की थी, उसे परम शान्तिप्रदाता जैनधर्म वहुत पसन्द आया । वह शुद्ध श्राविका वन गई।
दम्पति (कपिल और सुशर्मा) धन-प्राप्ति की इच्छा से नगरी के