Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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: ११: रामपुरी में चार मास
राम, लक्ष्मण और सीता दशांगपुर से चलकर एक निर्जन वन में पहुँचे । कोमलांगी सीता के अधर सूग्व गये। तृषा की तीव्रता से उसके कण्ठ में काँटे से चुभने लगे। मार्ग की थकान भी थी। एक सघन वृक्ष के नीचे बैठकर राम ने कहा
-लक्ष्मण ! देवी सीता तृषातुर हैं।
अनुज तुरन्त जल की खोज में चल दिया। कुछ दूर आगे चलकर उन्हें कमलों से परिपूर्ण निर्मल जल से भरा सरोवर दिखाई दिया। सरोवर तट पर कुबेरपुर के शासक कल्याणमाला के शिविर पड़े हुए थे। लक्ष्मण को देखते ही कल्याणमाला के अंग में अनंग समा गया। उसने नमस्कार करके लक्ष्मण से विनय की
-आर्य ! हमारा आतिथ्य स्वीकार कीजिए।
लक्ष्मण ने देखा कि सामने वाला युवक कामविह्वल है। उन्होंने विचार किया—'पुरुप के प्रति पूरुप का आकर्षण इस प्रकार का नहीं होता । अवश्य ही यह युवक नहीं, युवती है। किसी कारणवश इसने पुरुष-वेप धारण किया है।' प्रकट में बोले
-मेरे अग्रज श्रीराम देवी सीता के साथ समीप ही बैठे हैं। उनके विना मैं आपका आतिथ्य स्वीकार नहीं कर सकता।