Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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- राम वन-गमन | २०३ ..... कैकेयी के एक वाक्य ने सम्पूर्ण अयोध्या को अंगारों पर ला
विठाया। धिक्कार है. ऐसे पुत्रमोह को। राजमहल और अयोध्या की इस शोकपूर्ण स्थिति से वह भी अछूती न रह सकी। बारम्बार स्वयं को धिक्कारती किन्तु उसके प्रायश्चित्त का अव मूल्य ही क्या था? युग-युगों के लिए उसके मस्तक पर कलंक का टीका लग चुका था । बात इतनी विगड़ चुकी थी कि बनाई न जा सकी।
विगड़ी वात को बनाने का प्रयास किया राजा दशरथ ने। उन्होंने सामन्त आदि को राम को लौटाने के लिए भेजा। राम अपनें । निर्णय पर अटल रहे किन्तु सामन्तों ने भी उनका पीछा न छोड़ा वे उनसे लौट चलने की प्रार्थना करते ही रहे। : राम, लक्ष्मण और सीता आगे बढ़े तो सामन्त उनके पीछे चले। पश्चिम दिशा की ओर चलते हुए श्रीराम विध्याटवी में जा पहुँचे। . वहाँ बहने वाली गम्भीरा नदी के किनारे पर खड़े होकर श्रीराम ने सामन्तों को सम्बोधित करके कहा
-सामन्तो ! आप सब लोग यहां से वापिस लौट जाओ क्योंकि आगे का मार्ग बहुत भयानक और कष्टप्रद है। नगर वापिस जाकर माता-पिता को हमारा कुशल-समाचार दे देना और अनुज भरत को . पिताजी के स्थान पर मानकर उनकी आज्ञा का पालन करना। .. सभी ने भली-भांति समझ लिया था कि राम नहीं लौटेंगे। वे
निराश सिर धुनते हुएं वहीं खड़े रह गये। राम अपने अनुज लक्ष्मण - और सीता के साथ नदी पार करके दूसरे किनारे पर पहुँच कर दृष्टि :
से ओझल हो गये तो सामन्त आदि अयोध्या लौट आये।
- १. श्रीराम, लक्ष्मण और जानकी अयोध्या से चलकर तमसा नदी के किनारे
पहुंचे और रात्रि के अन्धकार में जव समस्त पुरवासी (जो उनको लौटा लाने की इच्छा से उनके साथ आये थे) निद्रामग्न थे तो राम ने मन्त्री