Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१९६ | जैन कथामाला (राम-कथा)
रत्नमाली ने पूछा- तुम कौन हो ? और मुझे क्यों वर्जना दे
रहे हो ?
उस देव ने बताया
रत्नमाली ! मैं तुम्हारे पूर्वजन्म के पुरोहित उपमन्यु का जीवहूँ । उस समय तुम भूरिनन्दन नाम के राजा थे। विवेकवश तुमने मांस भक्षण न करने की प्रतिज्ञा ली थी किन्तु अपने पुरोहित उपमन्यु की प्रेरणा से छोड़ दी । उपमन्यु को स्कन्द नाम के एक व्यक्ति ने मार डाला और वह मरकर हाथी हुआ । उस हाथी को भूरिनन्दन
राजा ने पकड़ लिया और उसे युद्ध में ले जाने लगा । एक युद्ध में हाथी की मृत्यु हो गई और वह भूरिनन्दन राजा की ही रानी गान्धारी के गर्भ से अरिसूदन नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ । अरिसूदन को जाति-स्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया और उसने प्रव्रज्या ले ली । कालधर्म प्राप्त कर वह सहस्रार' देवलोक में उत्पन्न हुआ । राजा भूरिनन्दन मरकर एक वन में अजगर हुआ। वहाँ दावानल से दग्ध होकर मरा तो दूसरी नरकभूमि में नारकी वना और घोर कष्ट पाने लगा | पूर्वजन्म के सम्बन्ध के कारण अरिसूदन के जीव ने उसे वहाँ जाकर सम्बोधा। नरकभूमि से निकलकर भूरिनन्दन का जीव तू रत्नमाली हुआ है ।
राजा रत्नमाली को सम्बोधित करते हुए देव कहने लगा
मांस भक्षण के पाप से तो तुमने इतने कष्ट पाये हैं और अव इस नगरदाह के घोर पाप से तुम्हारी कितनी दुर्दशा हांगी ? इसलिए हे राजन् ! इस दुष्ट विचार को हृदय से निकालकर धर्म का आराधन करो ।
देव की प्रेरणा से राजा रत्नमाली को वैराग्य हो गया । उसने अपने पौत्र सूर्यनन्दन (सूर्यजय का पुत्र) को राज्य भार सौंपा और १ आठवाँ देवलोक (स्वर्ग)