Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सीता-स्वयंवर | १८७ विद्याधर चन्द्रगति ने देवर्षि की खोज कराई तो वे वहीं रथनूपुर में डटे हुए मिले । विद्याधर राजा ने पूछा
-देवर्षि ! यह किस सुन्दरी का चित्र है ? नारदजी कहने लगे
-राजन् ! यह मिथिलापति राजा जनक की सुता सीता है । मैंने इसे कुमार भामण्डल के सर्वथा योग्य समझा, इसीलिए यह चित्र कुमार को दिखाया।
सम्मानपूर्वक नारदजी को विदा करके चन्द्रगति ने चपलगति नाम के विद्याधर को आज्ञा दी--आज रात्रि को ही मिथिलानरेश का अपहरण कर लाओ।
आदेश का पालन हुआ और निद्रावस्था में ही जनक रथनूपुर पहुँच गये। चन्द्रगति ने बड़े स्नेह से उन्हें गले से लिपटा लिया और बोला
मिथिलापति ! अपनी पुत्री सीता का विवाह मेरे पुत्र भामण्डलकुमार से कर दीजिए।
जनक इस नई परिस्थिति से विस्मित तो थे ही वे अचकचाकर वोले
-पहले तो यह वताइए कि मैं कहाँ हूँ और आप कौन हैं ?
-जनकराज ! इस समय आप वैताढ्यगिरि पर अवस्थित रथनूपुर नगर के स्वामी चन्द्रगति के समक्ष वैठे हैं । मैं आपसे आपकी पुत्री की याचना अपने पुत्र भामण्डल के लिए कर रहा हूँ। आप चाहें तो स्वयं मेरे पुत्र को देखकर निर्णय कर लें। वैसे वह आपकी पुत्री के सर्वथा योग्य है। ___कुमार को देखने की आवश्यकता नहीं, मुझे आप पर विश्वास है, किन्तु.......