Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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वरुण विजय | १२६ वरुण राजा के नगर के सम्मुख रावण ने अपनी सेना लगा दी। वरुण भी शत्रु को समक्ष देखकर बाहर निकला और राजीव तथा पुण्डरीक आदि सौ पुत्रों को साथ लेकर युद्ध करने लगा।
युद्ध में लंकेश हनुमान का पराक्रम देखकर प्रसन्न हो रहा थाउसे लगा कि यह युवक आगे चलकर वहुत ही पराक्रमी योद्धा होगा।
वीर हनुमान ने वात की बात में वरुण के सौ पुत्रों को बाँध लिया। पूत्रों के वन्दी होते ही वरुण कोपायमान होकर हनुमान की ओर दौड़ा। उसकी आँखों में अंगारे दहक रहे थे और चिनगारियाँ छूट रही थीं। .. - अपने अतिवली सहयोगी की ओर वरुण को जाता देख लंकेश चुप न रह सका। उसने घनघोर वाणवर्षा करके वरुणराज को ढक ही दिया और जिस प्रकार पर्वत नदी के वेग को रोक देता है वैसे ही उसने वरुण को रोक दिया।
महावली लंकेश की तीव्र बाणवर्षा से वरुण व्याकुल हो गया। अवसर का लाभ उठाने में चतुर रावण उसके हाथी पर जा कटा तथा इन्द्र की ही भाँति उसे भी बाँध लिया।
राक्षसपति रावण विजयी हुमा।' वरुणराज और उसके सभी पूत्रों ने उसकी अधीनता स्वीकार की। वचनबद्ध हो जाने पर लंका
१ वाल्मीकि रामायण के अनुसार वरुण की हार नहीं हुई क्योंकि वह उस समय अपनी नगरी में था ही नहीं । घटना इस प्रकार है
- रावण दिग्विजय की इच्छा से रसातल को गया। वहाँ, निवातकवच नाम के दैत्यों ने उसका मार्ग रोका । निवातकवचों पर विजय प्राप्त करके आगे बढ़ा तो अश्म नाम के नगर में पहुंचा। इस नगर में कालकेय नाम के दानव निवास करते थे। वहाँ उसने युद्ध में विद्युज्जिह्व (यह रावण की बहन शूर्पणखा का पति था) के तलवार से टुकड़े कर
डाले।