Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राम-लक्ष्मण का जन्म | १६५ . -इस वरदान को मेरी धरोहर समझकर अपने पास ही रख लें। जब भी आवश्यकता पड़ेगी माँग लूंगी।'.
राजा दशरथ ने स्वीकार कर लिया। - दोनों पति-पत्नी राजा शुभमति के सम्मुख पहुंचे तो उन्होंने जवाई (दामाद) को कण्ठ से लगा लिया। सफलता का सर्वत्र सम्मान होता है।
धूमधाम से कैकेयी और दशरथ का विवाह हो गया। जनक - सहित वे दोनों कुछ दिन बाद कोतुकमंगल नगर से चल दिये। राजा जनक तो अपनी नगरी मिथिलापुरी पहुँच गये किन्तु दशरथ अयोध्या न लौटे । उनके हृदय में लंकापति रावण का भय अव भी समाया हुआ था। अपनी कुशलता से उन्होंने राजगृही नगरी को विजय किया और वहीं रहने लगे । कुछ समय पश्चात् उन्होंने अपना अन्तःपुर भी वहीं बुला लिया। अव राजा दशरथ अपनी चारों रानियों के साथ सुख-भोग में लीन हो गये।
सर्वप्रथम गर्भवती हुई पटरानी अपराजिता (कौशल्या)। उसने वलभद्र की माता को दिखाई देने वाले चार स्वप्न देखे-हाथी, सिंह, चन्द्र और सूर्य । ब्रह्म देवलोक से च्यवकर कोई महद्धिक देव उसकी कुक्षि में अवतरित हुआ। अनुक्रम से गर्भकाल पूरा हुआ और
१ कोप भवन में बैठी हुई कैकयी ने राजा दशरथ को याद दिलाते हुए कहा--
'महाराज ! उस पुरानी वात को याद कीजिए जब देवासुर संग्राम में शत्रु ने आपको घायल करके गिरा दिया था। आप मरणासन्न थे । तव रात भर मैंने आपकी सेवा की और स्वस्थ होने पर आपने मुझे प्रसन्न होकर दो वर दिये थे ।'
इस प्रकार राजा दशरथ ने एक नहीं दो वर रानी कैकयी को दिये । और वह भी देवासुर संग्राम में। [वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकाण्ड]