Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१७० | जैन कथामाला (राम-कया) के सहयोग से समस्त देश में सुख और शान्ति का साम्राज्य छा गया था।
. -त्रिषष्टि शलाका ७४४ -उत्तर पुराण ६७११६३-१६४
स्त्री के लिए तड़प रहा हूँ वैसे ही तुम भी तड़पोगे और आज तुमने मेरा वानर का रूप बनाया तो तुम भी वानरों की सहायता से ही अपनी पत्नी को प्राप्त कर पाओगे। • शिव के गणों ने नारद से क्षमा याचना की और हंसी उड़ाने पर पश्चात्ताप प्रगट किया तो नारद ने उनसे कहा-'तुम राक्षस तो होंगे किन्तु महावली और बड़े समृद्धिशाली । विष्णुजी के हाथों मरकर तुम्हें मुक्ति प्राप्त हो जायगी।
इसी कारण विष्णु को राम के रूप में जन्म लेना पड़ा, सीता वियोग हुआ और शिवजी के गण रावण और कुम्भकरण के रूप जन्मे तथा राम के हाथों मरकर मुक्त हुए । [वालकाण्ड : दोहा १२४-१४०]
(२) स्वायंभुव मनु और उनकी पत्नी शतरूपा ने दस हजार वर्ष तक तपस्या करके विष्णु को अपने पुत्र में रूप में पाने का वर माँगा था। इसी कारण विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया।
[बालकाण्ड : दोहा १४१-१५२] (३) कैकय देश के राजा का नाम सत्यकेतु था। उसके दो पुत्र थे-बड़ा प्रतापभानु और छोटा अरिमर्दन । राजा ने बड़े पुत्र प्रतापभानु को राज्य दिया और स्वयं भगवान का भजन करने लगा । उसका मन्त्री धर्मरूचि था। प्रतापभानु ने अपने पराक्रम से अनेक राजाओं को जीत लिया था।
एक बार राजा किसी जंगली सूअर का शिकार करने की धुन में एक घने जंगल में भटक गया। वहाँ उसे एक मुनि की कुटिया दिखाई