Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
राम-लक्ष्मण का जन्म | १७१
दी । (वह मुनि एक पराजित राजा था जिसका राज्य प्रतापभानु ने छीन लिया था और अब वह एक कुटिया बनाकर जंगल में रहने लगा था । सूअर कालकेतु नाम का राक्षस था जो उसने राजा को भटकाने के लिए भेजा था।)
उस कपट मुनि ने राजा को आश्रय दिया। राजा ने उससे यह । वर माँगा कि 'मेरा शरीर रोग, वृद्धावस्था और मृत्यु से रहित हो जाय तथा सौ कल्प अकंटक मेरा राज्य चले ।'
मुनि ने इसके लिए ब्रह्मभोज का आयोजन करने का उपाय बताया। भोजन परोसने का दायित्व राजा को दिया और बनाने का स्वयं ग्रहण किया।
राजा निश्चिन्त होकर सो गया तो कपट मुनि ने कालकेतु राक्षस की सहायता से उसे उसके राजमहल में पहुँचवा दिया।
चौथे दिन राक्षस कालकेतु ने उसके मन्त्री को वहाँ गायव करके एक गुफा में रख दिया और स्वयं वहाँ जा पहुंचा।
मन्त्री ने भोजन बनाया तो उसमें पशुओं के मांस के साथ ब्राह्मणों का मांस भी मिला दिया। राजा ने अनभिज्ञता में वह भोजन परोस दिया । ब्राह्मण खाने को तत्पर हुए तभी कालकेतु ने अदृश्य रहकर आकाशवाणी की-'इस भोजन को मत खाओ । इसमें ब्राह्मणों का मांस मिला है।'
यह सुनकर ब्राह्मण उठ गये और उन्होने राजा को राक्षस होने का शाप दे दिया।
राजा प्रतापभानु रावण बना, अरिमर्दन कुम्भकर्ण और मन्त्री धर्मरुचि विभीषण ।
[बालकाण्ड : दोहा १५२-१७६] विशेष-श्रीराम का जन्म अभिजित नक्षत्र में हुआ।
[बालकाण्ड, दोहा १६१ प्रथम चौपाई]