Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१६६ | जैन कथामाला (राम-कथा) अपराजिता रानी ने पुण्डरीक कमल के समान तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । राजा ने प्यार से उसका नाम रखा - पद्म किन्तु वह बालक 'राम' के नाम से जग-विख्यात हुआ ।
रानी सुमित्रा ने भी रात्रि के अन्तिम प्रहर में वासुदेव के जन्म को सूचित करने वाले सात स्वप्न देखे हाथी, सिंह, सूर्य, चन्द्र, अग्नि, लक्ष्मी और समुद्र । उस समय देवलोक से एक परमद्धिक देव अपना आयुष्य पूर्ण करके रानी के गर्भ में अवतरित हुआ। रानी गर्भवती हुई और गर्भकाल पूरा होने पर उसने श्यामवर्णी, मेघ के समान जगत को सुखी करने वाला पुत्र उत्पन्न किया।
जैसा उत्सव दशरथ ने बड़े पुत्र के जन्म पर किया उससे कहीं अधिक इस पुत्र के जन्म पर । पुत्र का नाम रखा गया नारायण किन्तु संमार में लक्ष्मण के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
दोनों पुत्र धीरे-धीरे बढ़ने लगे। ज्यों-ज्यों उनकी आयु बढ़ती गई वे सभी कलाओं और विद्याओं में पारंगत होते गये। दगरय उन दोनों के वल-पराक्रम को देखकर स्वयं को अजेय समझने लगे। वलवान और नीतिवान दोनों पुत्रों के कारण उनका भय पलायन कर गया और वे अन्तःपुर सहित पुन: अयोध्या लौट आये । रामलक्ष्मण जैसे जिसके पुत्र हों उसे अब रावण का क्या भय ? जिस
गई वे सभा के बल-पराक्रम दोनों पुत्रों का अयो
१ इस बात को (सगर की मृत्यु को) सुनकर राजा दशरथ ने मोत्रा
कि हमारा कुल परम्परागत राज्य अयोध्या में चला जाता है। इसलिए वे पुत्रों सहित अयोध्या माये वहाँ राज्य करने लगे। वहीं पर किसी रानी ने भरत नाम का पुत्र हुआ और किसी दूसरी रानी से शत्रुघ्न नाम का पुत्र का हुआ।
[उत्तर पुराण ६७१६३-६४] ___ यहां भरत तथा शत्रुघ्न की माताओं के नाम का कोई उल्लेख नहीं है।
-सम्पादक