Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राम-लक्ष्मण का जन्म
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अयोध्या नरेश राजा अनरण्य तो अपने मित्र माहिष्मती नरेश सहस्रांशु के साथ दीक्षित हो ही चुके थे और उन्हीं के साथ उनका वड़ा पुत्र अनन्तरथ भी प्रवजित हो गया। परिणामतः अयोध्या के राजा का पद छोटे पुत्र दशरथ को एक मास की आयु में ही प्राप्त हुआ और वाल्यावस्था में ही उन पर शासन का भार आ पड़ा । मुनि अनरण्य तो केवली होकर सिद्धशिला में जा विराजे और अनन्तरथ मुनि घोर तपस्या करते हुए पृथ्वी पर विचरने लगे। . ___यद्यपि राजा दशरथ क्षीरकण्ठ' को बाल्यावस्था में ही शासन का उत्तरदायित्व सम्भालना पड़ा किन्तु इससे उनकी कुशलता और कर्तव्यनिष्ठा में निखार ही आया। वे निष्ठापूर्वक सद्धर्म का पालन करते और प्रजा के हित में संलग्न रहते।
युवावस्था में प्रवेश करने पर राजा दशरथ के पराक्रम की कीर्ति चारों ओर फैल गई। लोग उनके सुशासन की प्रशंसा करने लगे। उनके गुणों से आकर्षित होकर दर्भस्थल (कुशस्थल) के राजा सुकोशल
१ देखिए पिछने पृष्ठों में 'सहस्रांशु की दीक्षा'। २ यह राजा दशरथ का दूसरा नाम था।
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