Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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| जैन कथामाला (राम-कथा)
पति ने उसे पुनः सिंहासन पर बिठाया और वापिस लंका चला
आया ।
लंकापति की सम्पूर्ण सेना में हनुमान के वल और पराक्रम की चर्चा थी । सभी एक स्वर से उसे अतिवली कह रहे थे । रावण ने भी उसका विशेष सम्मान किया ।
वरुण ने अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह उसके साथ कर दिया । इससे अच्छा वर, उसे और मिलता भी कहाँ ? रावण ने भी चन्द्रनखा · (सूर्पणखा ) की पुत्री अनंगकुसुमा का लग्न उसके साथ करके अपना सत्कार प्रकट किया। सुग्रीव ने अपनी पुत्री पद्मरागा, नल ने अपनी कन्या हरिमालिनी तथा अन्य दूसरे राजाओं ने अपनी हजारों कन्याओं देकर वीर हनुमान का सम्मान बढ़ाया ।
दशमुख ने हर्षपूर्वक दृढ़ आलिंगन करने वीर हनुमान को विदा किया तथा अन्य सभी राजा अपने-अपने स्थानों को चले गये ।
- त्रिषष्टि शलाका ७१३
वहाँ से आगे चलकर उसे वरुण का राजमहल दिखाई दिया । उसने वरुण के योद्धाओं से कहा कि 'तुम लोग अपने राजा से कहो कि या तो युद्ध करे अथवा पराजय माने ।'
यह सुनकर वरुण के पुत्र निकल आये और उनसे युद्ध होने लगा । वरुण-पुत्र रावण की विकट मार से घबड़ाकर युद्ध से परांगमुख हो गये । तवं रावण ने पुन: कहा – योद्धाओ ! अव युद्ध के लिए स्वयं वरुण राज को बुलाओ ।
योद्धाओं ने उत्तर दिया- राक्षसराज ! वरुणराज तो ब्रह्मलोक में संगीत सुनने गये हैं । वे तो यहाँ हैं नहीं और उनके पुत्रों को आपने परास्त कर ही दिया है । अव व्यर्थ परिश्रम से क्या लाभ ?
रावण ने अपने हृदय में समझ लिया कि उसने वरुण को परास्त कर दिया है । वह हर्ष से गर्जना करने लगा और लंका की ओर चल दिया | [ वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड ]