Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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हिंसक यज्ञों की उत्पत्ति | ७१ मैं तो जन्म से घुमक्कड़ हूँ ही। एक बार घूमता-फिरता पर्वत के आश्रम में जा पहुंचा। उस समय वह विद्यार्थियों को 'अजैर्यष्टव्यं" शब्द का अर्थ समझा रहा था। उसने अर्थ किया-मेढ़ा (बकरा) से यज्ञ करना।' मैंने उसे बीच में ही टोक दिया और कहा-भाई, गुरुजी ने तो इसका अर्थ 'तीन वर्ष पुराने चावल अथवा यव (जौ) से यज्ञ करना' ऐसा बताया था, तुम यह विपरीत अर्थ क्यों कर रहे हो? अभ्यासियों को सही अर्थ वताओ।
पर्वत ने समझा कि मैं उसका अपमान कर रहा हूँ। उसने अपनी भूल स्वीकार नहीं की वरन् मुझसे ही कहने लगा
-मेरे पिता ने तो अज का अर्थ मेढ़ा ही बताया था। मैंने समझाने का प्रयास किया
--भाई 'अज' शब्द की व्युत्पत्ति है 'न जायन्ते इति अजाः' अर्थात् जो उत्पन्न न हो सके, उगे नहीं वह 'अज' कहलाता है। मेरी इस युक्तियुक्त वात से वह चिढ़कर कहने लगा
-निघंटु (कोष) में भी अज का अर्थ मेढ़ा (वकरा) है। -~-कोप में इसका अर्थ तीन वर्ष पुराना चावल भी है । एक शब्द के अनेक अर्थ कोष में दिये होते हैं, प्रसंगानुसार सही अर्थ का
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कारण जानने के लिए उसने वाण छोड़ा तो वह भी गिर गया। तव राजा स्वयं उस स्थान पर गया। टटोलने पर उसे अनुभव हुआ कि यह अदृश्य स्फटिक स्तम्भ है । वह उसे उठवा लाया और अपने सिंहासन के चार पाये वनवा लिए । उसका यश चारों ओर फैल गया कि वसु का सिंहासन सत्य के प्रताप से आकाश में स्थित है।
-उत्तर पुराण पर्व ६७, श्लोक २७६-२८१ १ 'अजैोतव्यम्' का अर्थ नारद के अनुसार तीन वर्ष पुराना जौ का बीज
और पर्वत के अनुसार बकरा । -उत्तर पुराण ६७।३२६-३३२