Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८० | जैन कथामाला (राम-कथा) ___-पुरोहितजी ! आज आपकी कवित्वशक्ति की परीक्षा का समय है।
—आज्ञा, राजन् !
--एक ऐसी 'राजलक्षणसंहिता' की रचना करो जिसके अनुसार समस्त शुभ लक्षण मेरे शरीर में हों और मधुपिंग उन लक्षणों से हीन । साथ ही शर्त यह भी है कि वह पुरानी भी दिखाई पड़ेरचना, शब्द-कौशल, शैली, दृष्टान्त आदि सभी दृष्टियों से ।
-जैसी आपकी इच्छा, श्रीमान् !
और पुरोहितजी ने कुशलतापूर्वक राजा की इच्छानुसार 'राज-लक्षण-संहिता" लिखी तथा पुराने से बक्स (पेटी) में बन्दी कर दी।
वातों ही बातों में सगर राजा ने चतुराईपूर्वक राजा अयोधन की सभा में राजलक्षणों की चर्चा चला दी। विषय रोचक था। सभी अपनी-अपनी सम्मतियाँ प्रगट करने लगे।
एक राजा ने कह दिया
-सभी के अपने-अपने अलग-अलग विचार हैं। इस विषय पर कोई प्रामाणिक पुराना ग्रन्थ हो तभी तो निर्णय हो सकता है। दूसरे ने उत्तर दिया
-शास्त्रों की रक्षा और पठन-पाठन तो पुरोहित वर्ग ही करता है। ऐसा ग्रन्थ उन्हीं के पास मिल सकता है।
१ ग्रन्थ का नाम राज-लक्षण-संहिता के स्थान पर 'स्वयंवर विधान'
वताया है। उस ग्रन्थ को लिखकर मन्त्री ने पेटी में रखकर वन में किसी वृक्ष के नीचे गाड़ दिया तथा यह बात किसी को नहीं मालूम होने दी।
--उत्तर पुराण ६७१२२८-२३१