Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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इन्द्र का पराभव [ १०१ किरणों के साथ ही रणभूमि में रक्त वहने लगो। योद्धा अपनी युद्ध-कुशलता दिखाने लगे।
राक्षसेन्द्र रावण अपने गज भुवनालंकार पर आरूढ़ होकर इन्द्र के सम्मुख आया । इन्द्र भी अपने हाथी ऐरावण पर सवार था। · · दोनों परस्परं अनेक प्रकार के आयुधों से - युद्ध करने लगे। स्वामिभक्त पशु भी दन्त प्रहार, गुण्ड प्रहार करके अपने वल-का प्रदर्शन कर रहे थे।
रणकुशल और अति छली रावण अचानक इन्द्र के हाथी ऐरावणपर उछलकर जा कूदा। विजली की-सी तेजी से उसने महावत को, मार दिया और इन्द्र को पकड़ लिया। इन्द्र इस अचानक वार के लिए तैयार नहीं था । वह भौचक्का सा रह गया। उसकी विस्मित दशा का लाभ उठाकर रावण ने उसे वन्दी बना लिया। ,
इन्द्र के वन्दी होते ही रावण की. विजय हो गई और उसकी सेना ने अस्त्र डाल दिये।
विजय-दुन्दुभी वजाता हुआ लंकेश वन्दी इन्द्र को लेकर लंका में आया और उसे वन्दीगृह में डाल दिया।'
१ (क) रावण के साथ सुमाली राक्षस (रावण का नाना) भी गया था और
उसकी मृत्यु सवित्र नाम के वसु के हाथों हुई। (ख) इन्द्र के पुत्र जयन्त को दैत्य राजा पुलोमा दूर हटा ले गया। दैत्य राजा पुलोमा शची का पिता और जयन्त का नाना था। वह अपने दौहित्र (धवते) को लेकर समुद्र में छिप गया। (ग) शंकरजी से प्राप्त हुई माया से इन्द्रजीत ने अदृश्य होकर इन्द्र को बाँध लिया । इस प्रकार उनकी विजय हुई और पिता-पुत्र दोनों ही इन्द्र को लंका ले आये।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड]