Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१२० [ जैन कथामाला (राम-कथा) भी किलक-किलककर हाथ-पाँव चलाता-उछलता और माता का मन मोद से भर जाता । आज दीर्घकाल के पश्चात वसन्ततिलका ने सखी को प्रसन्न देखा तो वह भी हर्ष विभोर हो गई। : अचानक ही शिशु जोर से उछला और भूमि की ओर जाने लगा। अंजना 'हाय लाल ! हाय लाल !!' कहकर छाती कूटकर विलाप करने लगी। जव तक विद्याधर समझे कि मामला क्या है शिशु वहुत नीचे गिर चुका था और तीव्र वेग से गिरता ही चला जा रहा था। मामा भी भानजे के पीछे-पीछे कूद पड़ा। नीचे पर्वत शैल पर आया तो आश्चर्यचकित रह गया। .
जिस शिला पर शिशु गिरा था वह तो चूर-चूर हो गई और वालक अक्षतवदन उस पर पड़ा किलकारियाँ भर रहा था मानो शिला पर वालक नहीं वज्र गिरा हो । प्रसन्न होकर मामा ने शिशु को उठाया और आकाश में उड़कर विमान में रोती हुई अंजना के अंक में ले जाकर डाल दिया। . - रोती हुई माता ने शिशु को अक्षत शरीर देखा तो प्रसन्न हो गई । तत्काल उसे मुनिराज के वे वचन याद आ गये- 'बालक महापराक्रमी और चरमशरोरी होगा'। मुनिराज के स्मरण मात्र से ..अंजना का हृदय गद्गद हो गया। उसने अंक में खेलते बालक को
छाती से चिपका लिया। ____विमान से उतरकर अंजना ने राजमहल में प्रवेश किया तो सभी ने उसका स्वागत कुलदेवी के समान किया।
मामा ने भानजे का नाम अपनी नगरी के नाम पर हनुमान' रखा
।
हनुमान की माता का नाम तो अंजना ही है किन्तु पिता का नाम केसरी है और उन्हें सुमेरुगिरि का राजा बताया गया है । साथ ही यह भी उल्लेख है कि हनुमान को अंजना से वायुदेव ने ही उत्पन्न किया था।
वहीं इनकी वर-प्राप्ति का भी वर्णन है। एक बार हनुमान