Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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५२ ! जैन कथामाला (राम-कथा) लगा । महामुनि वाली की काया भी कम्पायमान हुई और उनका ध्यान भंग हो गया । अवधिज्ञान से उपयोग लगाकर जाना कि यह सब विपत्ति ईर्ष्यालु और अभिमानी रावण का ही कुकृत्य है । यद्यपि मुनि अपने प्रति तो निस्पृह थे किन्तु भयभीत प्राणियों पर उन्हें करुणा आई, साथ ही अष्टापद तीर्थ के रक्षण की भावना भी । वे जानते थे कि रावण बातों का नहीं लातों का भूत है । वातों से यह समझंगा नहीं, शिक्षा देनी ही पड़ेगी। करुणा हृदय महामुनि ने अपने पैर के अगूठे का थोड़ा सा दवाव पर्वत पर डाल दिया। ___ मुनियों का पराक्रम कौन सह सकता है ? तत्काल अपनी समस्त शक्तियों सहित रावण पर्वत के नीचे दब गया। मुख से रक्त निकलने लगा और करुण स्वर में विलाप करने लगा। उसके रुदन से महामुनि का करुणार्द्र हृदय भर आया और उन्होंने अंगूठे का दवाव हटा लिया। उस समय राने के कारण ही दशानन का नाम रावण पड़ गया और इसी नाम से वह आज तर्क प्रसिद्ध है।
१ वाल्मीकि रामायण में रावण के पर्वत को उठाने, उसके नीचे दबकर रोने आदि की घटना शंकरजी से सम्बद्ध की गई है।
एक वार दशानन 'शरवण' नाम से प्रसिद्ध सरकण्डों के वन में गया। वहाँ से वह विमान में बैठकर चलने लगा । एकाएक उसके विमान . की गति रुक गई। देखा तो नीचे एक पर्वत था। कारण जानने के लिए पर्वत पर उतरा तो शंकरजी के पार्षद नन्दी आकर बोले-'दशानन ! लौट जाओ ! इस पर सुपर्ण, यक्ष, गन्धर्व, नाग, देवता, राक्षस आदि किसी को नहीं आने दिया जाता। यह शंकरजी की क्रीड़ा-स्थली है।' रावण उनका वानर रूप देखकर अट्टहास करने लगा। नन्दी ने शाप दिया-'राक्षस ! जिस वानर रूप में देख तुमने मेरी अवहेलना की है, वही वानर तुम्हारे कुल-विनाश के कारण होंगे।'