Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सहस्रांशु की दीक्षा
धरणेन्द्र से प्राप्त अमोघविजया शक्ति तथा अन्य अनेक विद्याओं का स्वामी तो रावण हो ही चुका था। अव उसने दिग्विजय का निर्णय किया।
निर्णयानुसार रावण लंका से निकल कर पाताल लंका गया। पाताल लंका के अधिपति खर ने उसका भेंट आदि से सत्कार किया
१ आदित्यराजा और ऋक्षसजा को यम के बन्दीगृह से, छुड़ाने के बाद
एक बार रावण परिवार सहित मेरु पर्वत पर अर्हन्त भगवन्तों की वन्दना हेतु गया था। उसकी अनुपस्थिति में मेघप्रम का पुत्र खर विद्याधर लंका में आया । चन्दनखा ने उसको देखा और उसने चन्द्रनखा को-दोनों में प्रेम हो गया और खर उसे लेकर पाताल लंका चला गया।
पाताल लंका में उस समय आदित्यराजा का पुत्र चन्द्रोदर राज्य कर रहा था ।' किष्किधा जाते समय आदित्यराजा इसे पाताल लंका का भार सौंप गये थे। विद्याधर खर ने उसे वहाँ से मार मगाया और स्वयं पाताल लंका का राजा बन बैठा ।
रावण ज्यों ही मेरु गिरि से वापस आया तो वहन के अपहरण की घात सुनकर आगबबूला हो गया और खर को मारने चला। उसी समय पटरानी मन्दोदरी ने समझायानाथ ! खर दोपी नहीं है। चन्द्रनखा