Book Title: Jain Kathamala
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४२ | जैन कथामाला (राम-कथा) के समक्ष वैश्रवण के योद्धा न टिक सके । वे रण-भूमि छोड़कर भाग खड़े हुए। वैश्रवण ने यह देखा तो उसे वैराग्य हो आया और वह युद्धभूमि छोड़कर प्रव्रजित हो गया।'
प्रव्रज्या की खबर पाकर रावण उसके पास गया और अनेक प्रकार से भक्तिपूर्वक वन्दन करके कहने लगा
--भाई ! मैं तो तुम्हारा छोटा भाई हूँ। तुम राज्य ले लो। मुझे क्षमा कर दो। मुझे नहीं मालूम था कि तुम ऐसे विरागी हो अन्यथा कभी विरोध न करता।
रावण मुनि वैश्रवण के वार-वार चरण पकड़कर विनती करने लगा। उसे अपने कार्य पर बहुत लज्जा थी किन्तु तद्भवमोक्षगामी वैश्रवण मुनि कायोत्सर्गपूर्वक ध्यानस्थ खड़े रहे। उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा। निराश रावण हृदय में खेद करता हुआ वहाँ से वापिस चला आया और लंकापुरो के सिंहासन पर बैठकर राज्य. कार्य का संचालन करने लगा।
एक वार पुष्पक विमान में बैठकर रावण सम्मेतशिखर पर अर्हन्तों के वन्दन हेतु गया। वन्दना करके जव वापस चलने को उद्यत हुआ तो उसके कर्णपुटों में हाथी की गर्जना का भयंकर स्वर पड़ा । स्वर उच्च था और हाथी की शक्ति एवं विशाल काया .
१ वैश्रवण के सिर पर रावण ने गदा का प्रहार किया । इससे वे मूच्छित
हो गये । देवों ने आकर वैश्रवण को उठाया और नन्दनवन में ले जाकर सचेत किया। इसके पश्चात पिता विश्रवा के आग्रह और प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने उसे कैलास पर्वत के समीप यक्षपुरी का शासक बना दिया।
[वाल्मीकि रामायण, उत्तरकाण्ड